न्यूज नजर : शरीर ढकने के लिए वस्त्र कैसे भी धारण कर ले और अपना श्रृंगार कैसा भी कर ले, यह केवल व्यक्ति की बाहरी स्थिति को ही व्यक्त कर सकता है। उसके आन्तरिक मन की स्थिति तो उसके कर्म ओर उसके व्यवहार से ही मालूम पड़ती है। कई तरह के चोले धारण कर बहरूपिया अपने मूल अस्तित्व के अनुसार ही रहता है। भगवान के चोले धारण कर के भी वह मानव ही बना रहता है। चोले से मन ओर मन की वृति को नहीं ढका जा सकता है भले ही सामान्य या विशेष जीवन जी रहा हो।
सागर की सुंदरता जल से नहीं होती है। जल तो केवल इस बात का प्रमाण है कि ये सागर है। जल की किस्म कैसी है वही सागर के रूप की जानकारी देतीं हैं। स्वच्छ शीतल निर्मल ओर मीठा जल तथा उसके आसपास का सारा दृश्य ही सागर के रूप को निखारता है।
सागर का जल जब प्रदूषित होने लगता है ओर आसपास का सारा माहौल जब बिगडने लगता है तथा जहरीले ओर जानलेवा जीव जन्तु इसमे अपना गुजर बसर कर निवास करने लगते हैं तो इन सब के कारण सागर की सुंदरता शनै शनै सूखने लग जातीं हैं और वो रूप का सागर अपने अंत की शुरुआत को देखने लग जाता है।
जमीनी हकीकत भी यही होती है कि जब कोई अपनी हैसियत का भान अपने कार्यो से दिखाता है तो उसकी हैसियत के रूप मे निखार स्वतः ही आ जाता है और उसके सम्मान की सुंदरता दिनों दिन बढ़ जाती है और ना ही उसे चोपाले लगा जगह जगह पर अपनें रूप के भजन कीर्तन करवाने पड़ते हैं बल्कि हर दिशाओं से आनें वालीं हवाओ की खुशबू ही उसका प्रचार प्रसार कर उसके रूप को निखार देतीं हैं।
संत जन कहते हैं कि हे मानव केवल चोलों की अदला-बदली में कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है क्योकि यह रूप के सागर की सुंदरता नापने का पैमाना नहीं है। इस सुंदर चोलों ने केवल शरीर को ढका है लेकिन मन को नहीं। मन के चोले की सुंदरता तो केवल उसके कर्म तथा उसी अनुरूप व्यवहार करने से ही आंकी जाती है।
इसलिए हे मानव, तू मन को नियंत्रित कर फिर आत्मा की बात सुन तुझे समझ में आ जायेगी कि तेरे कर्म से इस जमीन पर कौन सी और कितनी फसल पैदा हुईं हैं और उसकी किस्म क्या रही ओर क्या इस उत्पादन से तू कुछ हासिल कर लेगा। जब तक तेरे कर्म से इस जमीन को उचित बीज पानी और हवा नहीं मिलेगी तो तुझे हर बार फसल नही उसकी क्षति का मुआवजा ही मिलेगा। तेरे रूप के सागर सूखते ही चले जायेंगे और अकाल राहत कार्य जैसा ही लाभ तुझे हर बार मिलेगा।