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चन्द हसरतें उजाड़ती रहीं गुलशन

न्यूज नजर : चन्द हसरतें व्यक्ति, समाज, संस्कृति और व्यवस्था को तहस-नहस कर देती हैं। समूचा ढांचा जर्जरित हो कर गिरने की शुरुआत करने लग जाता है।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

चाहे यह ढांचा सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक, भौगोलिक या फिर सांस्कृतिक ही क्यो ना हो। ये हसरतें अपने को सफल बनाने के प्रयास करतीं हैं। इनके प्रयासों में सकारात्मकता नहीं होतीं क्योंकि येन केन प्रकारेण हसरतों को पूरा करने के लिए व्यक्ति नकारात्मक कदम ही उठाता है।

गुलशन को बर्बाद करने के लिए एक ही उल्लू काफ़ी होता है लेकिन जब गुलशन की हर शाखा पर उल्लू बैठ जाते हैं तो वे समूचे गुलशन को उजाड़ देते हैं। इस उजडी हुई तसवीर के पीछे बस चन्द हसरतें ही होती है जो अपने अस्तित्व को जिन्दा रखने के कोई भी कदम उठाने से परहेज नहीं करतीं हैं।

सदियों से आज तक इतिहास में ऐसे ही दौर रहे हैं जहां नक्कार खाने में तूतियां और अलगोज भी अनावश्यक शोर मचाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश करते हैं। इन सब के मूल में राज करने की नीति ही होती हैं जो समाज की हर एक व्यवस्था को अपने नियंत्रण में रख कर उसे अपने अनुसार ही चलाती है।

प्राचीन पौराणिक इतिहास की कथा से लेकर राजतंत्र तक यही तस्वीर देखने को ही मिलती है कि चन्द हसरतों ने नाकाम होकर व्यवस्था को जर्जरित कर दिया और राजतंत्रों का समापन समारोह करा कर प्रजातंत्र को प्रकट करवा दिया। इन सबके मूल कारणों में ऐशो-आराम, अपने हितों को साधने के लिए छल, बल, पाखंड, धोखा, लूट तथा लापरवाह व बेपरवाह बनकर हठधर्मीता का चोला ओढ़ कर राज करना ही था।

प्रजातंत्र में भी जब राजतंत्र की झलक आने लगती है तो उसका अंत राजतंत्र से भी ज्यादा खतरनाक होने लग जाता है। एक नहीं अनेक व्यक्ति राजा की तरह ही अपना प्रतिनिधित्व मांगने लग जाता है जबकि यह कार्य केवल जनता-जनार्दन का होता है कि वो अपनी बागडोर किस को सोपना चाहती है और अपने विकास को कैसा अंजाम दिलाना चाहती है।

राज चलाने के अलग अलग खेमे जब केवल अपनी ही पंसद को प्रकट करते हैं तो लगभग आधे लोग मजबूरी वश और बैमन से अपना फैसला देते हैं। ऐसे में प्रजातंत्र की आधी ही तस्वीर प्रकट होती है और प्रजातंत्र के मायने शनै शनै जर्जरित होने लग जाते हैं। परिणाम स्वरूप दंगे, फसाद, आन्दोलन, धरने, प्रदर्शन, असंतोष बढ़ जाते हैं। प्रजातंत्र का सेवक राजा बनकर उनका निदान करने लग जाता है। चन्द हसरतों से प्रजातंत्र की तस्वीर बदल जाती है तथा व्यवस्थाएं मातमी धुनें सुनकर कुछ बेहाल हो जाती हैं और प्रजातंत्र अपने नए रूप को खोजने में लग जाता है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव चन्द हसरतें अर्थात दिल की ख्वाहिश पूरी करने के लिए व्यक्ति जब कोई भी कदम उठा लेता है तो वह अपने समूचे व्यवस्था तंत्र को जर्जरित कर देता है। उसके जीवन का गुलशन उजड़ जाता है तथा बिना पतझड़ के पत्तियां जमी पर गिर जाती हैं। हर पत्ती पर लिखा होता है धोखा और सिर्फ धोखा। इसलिए हे मानव तू चन्द हसरतों को पूरा करने के लिए नकारात्मक कदम मत उठा, नहीं तो समूचे जीवन का गुलशन उजड़ जाएगा।