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गोरा जी ने बोई है हरी हरी मेहंदी..

 
 न्यूज नजर : सावन की बरसात और धरती को भीजती हुई देख सती पार्वती जी ने सोचा कि अब जमीन उपजाऊ हो चुकी है। अपने स्वभाव और रूचि के अनुसार पार्वती जी ने हाथ पर मेहंदी रचाने के लिए हरी हरी मेहंदी के पौधे लगा दिये हैं ताकि यह सावन मास के जल में अच्छी तरह उग आये। यह देख कर उनके पति भगवान शिव ने भी अपनी पसंद के पौधे बो दिए हैं।
भंवरलाल, ज्योतिषी एवं संस्थापक, जोगणिया धाम पुष्कर
पार्वती जी में राजसी तत्व की प्रधानता थी इस कारण वह अन्नपूर्णा के नाम से जानी जातीं हैं। अन्नपूर्णा इस जगत को अन्न धन लक्ष्मी और वैभव से भर देती है और इसी कारण संसार में प्राणी जन सुखी और समृद्ध बना रहता है। दूसरी ओर यह स्वंय माया बन कर सभी तत्वो का अर्थात सात्विक राजसी और तामसिक को अपने जाल में फंसा लेतीं हैं।
      भगवान शिव में तीनों तत्वो की प्रधानता है और इन तीनों गुणों से ऊपर हैं, फिर भी वह माया के वशीभूत हो जाते हैं। मूल रूप से शिव मृत्यु पर विजय करने के कारण मृत्युंजय कहलाते हैं। क्या अच्छा है और क्या बुरा है इस बात पर घोर नहीं करने के कारण वह अघोर कहलाते हैं। इस कारण उनमें तामसी स्वभाव का माना जाता है। माया के वशीभूत होने के कारण वे राजसी ठाठ बाट के बरदान देते हैं और महासती पार्वती जी के साथ राजसी ठाकुर बन कर रहते हैं।
    कठोर तप करके वह परम सात्विक बन जाते हैं अपने तीनों स्वभाव के कारण शिव त्रिगुण स्वामी कहलाते हैं।अपने स्वभाव ओर रुचि के अनुसार शिव नें भी अपनें सेवन की वस्तुओ को बो दिया है।
   शिव और पार्वती के इस खेल को देख सावन के बादल जम कर बरसने लग गये। इस तेज वर्षा को देख शिव पार्वती वनो की ओर रमन करने के लिए निकल पड़े। महासती पार्वती जी के प्रेम नें रमे शिव उन्हे तरह तरह के फूलों से सजा रहे हैं और हरी भरी घास में बैठा कर उनका वृक्षों की शाखा के झूलो पर झुला रहे हैं।
  शिव की बड़ी जटाओं से गंगा जा चुकी है और गले का सांप भी उनहे छोड़ जंगलो में स्वतंत्र भ्रमण कर रहा है ओर चन्द्रमा भी उनके मस्तक से दूर जा कर बादलों से अठखेलियां करने लग गया है।सांप गंगा ओर चन्द्रमा सभी अपने स्वभाव के अनुसार स्वतंत्र हो कर अपना व्यवहार करने लग गये। शिव ओर पार्वती जी अपने प्रेम में इतने मगन हो गये कि वह सब कुछ भुला बैठ ओर सावन का आनंद लेने लग गये।
सावन की तीज आते आते सूरज का प्रकाश ओर बरसात की बूँदें भी आपस में प्रेम करने लगी और आकाश में संतरगी इन्द्रधनुष बन गया है जो मानों ऐसा लग रहा है कि यह पार्वती को सतरंगी लहरियां ओढा रहे हैं। आकाश में इन्द्रधनुष को देख सती पार्वती जी को एक दम होश आता है और वह शिव को कैलाश पर्वत पर ले जाती है।
पार्वती जी की मेहंदी उग कर अपने परवान पर आ जातीं हैं तथा पार्वती जी मेहंदी को काट कर पीसती ओर हाथों पर मेहदी रचा कर महादेव को दिखाती है और कहतीं हैं देखो यह कितनी लाल है जो अपने प्रेम की अमरता को दिखा रही है।
         संतजन कहते है कि हे मानव शिव ओर पार्वती जी की कथा यह संदेश देतीं हैं कि अब अब सावन की वर्षा शुरू हो गयीं हैं और धरती की तथा शरीर की गर्मी भी अब अनुकूल हो गयीं हैं अतः धरती से प्रेम कर ओर उसमें खेतवाडी कर तथा वृक्षारोपण पौधारोपण कर ओर सावन की इस हरियाली को सदा बनाये रख ताकि प्रदूषण से मुक्ति मिलेगी और कृषि व वनस्पति उत्पादों के भंडार वर्ष भर भरे रहेगे। ठंडे दिमाग की यह अनुकूलता ही पति पत्नी ही नहीं सब घरों में प्रेम लायेगी ओर व्यवहारों के मीठे घेवर खिलायेगी।
       इसलिए हे मानव सावन की वर्षा में क्रोध अंहकार ओर हठ को त्याग ठंडे ओर सुहाने मोसम का लुफत उठा। प्रकृति के इस निशुल्क उपहार का आनंद ले।
भंवरलाल, ज्योतिषी एवं संस्थापक, जोगणिया धाम पुष्कर

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