न्यूज नजर : पिछले चार-पांच दिनों से चंद्रमा अपनी रोशनी बढ़ाता जा रहा था, रात चांदनी से नहा रही थी। आसमान में चमक बयां कर रही थी पूर्णिमा (पूर्णमासी) आने वाली है। वैसे तो पूर्णिमा हर महीने आती है लेकिन इस बार इसका महत्व तब और बढ़ जाता है जब इसके आगे गुरु लग जाता है। तब यह हो जाती है गुरु पूर्णिमा। हम आज ‘गुरु पूर्णिमा’ की बात करेंगे। ‘गुरु बिन ज्ञान नहीं, ज्ञान बिन आत्मा नहीं, ध्यान-ज्ञान-धैर्य और कर्म सब गुरु की ही देन हैं’। इन चंद लाइनों के बिना गुरु पूर्णिमा की बात अधूरी है।
गुरु पूर्णिमा एक ऐसा त्योहार है जिसमें गुरु और शिष्य के पवित्र रिश्तों की हजारों कहानियां हैं। 5 जुलाई को इस बार गुरु पूर्णिमा है, इसी दिन चंद्र ग्रहण होने से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य के साथ गुरुओं का आशीर्वाद लेने की पुरानी परंपरा रही है। बिना गुरु के जीवन अधूरा माना जाता है। शिष्यों के लिए गुरु का आशीर्वाद जीवन में सरल और सुगम बन जाता है। सही मायने में यह दिन गुरु को समर्पित है। मान्यता है कि बिना गुरु के कोई ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। जब किसी को सच्चा गुरु मिल जाता हैं, तो उसके जीवन के सारे अंधकार मिट जाते हैं। यह दिन इसलिए काफी अहम है कि इस दिन आपने जिससे भी कुछ ज्ञान हासिल किया हो उनके प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है।
गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है। हमारे देश में सदियों से चली आ रही गुरु शिष्य परंपरा आज भी कायम है।
गुरु की सीख हमें जीवन में आत्मबल प्रदान करती है। हमारे देश में गुरु शिष्य का रिश्ता सदियों से चला आ रहा है जो आज भी कायम है। आओ गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अपने गुरुओं को नमन करते हुए उनसे आशीर्वाद लें। वहीं अगर हम बात करें कि गुरु पूर्णिमा धार्मिक दृष्टि से भी बहुत महत्व रखती है। इसी दिन दान और स्नान करने से बहुत ही पुण्य मिलता है। कोरोना महामारी की वजह से भले ही लोग आज नदियों में स्नान न कर पाए लेकिन गुरु पूर्णिमा के दिन प्राचीन समय से ही स्नान करने की भी परंपरा रही है। गुरु पूर्णिमा के बाद से ही सावन मास भी शुरू हो जाता है।
पुराणों और वेद के रचयिता महर्षि वेदव्यास का जन्मदिन भी इसी दिन पड़ता है
आपको बता दें कि इसी दिन महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास का जन्म दिवस भी मनाया जाता है। वेदव्यास जी ने सभी 18 पुराणों की रचना की थी। यही कारण है कि कुछ स्थानों पर गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी।
बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। जीवन में गुरु का स्वरूप किसी भी रूप में प्राप्त हो सकता है। यह शिक्षा देते शिक्षक का हो सकता है, माता-पिता हो सकते हैं, या कोई भी जो हमें ज्ञान के पथ का प्रकाश देते हुए हमारे जीवन के अधंकार को दूर कर सकता है। गुरु के पास पहुंचकर ही व्यक्ति को शांति, भक्ति और शक्ति प्राप्त होती है। गुरु पूर्णिमा गुरु को प्रणाम करने का अवसर है और यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का अहम त्योहार है। भारतीय सभ्यता के हजारों सालों इतिहास ने पूरी दुनिया पर अपनी जो छाप छोड़ी है उसमें गुरु शिष्य परंपरा एक अहम पहलू है। आषाढ़ पक्ष की पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा के तौर पर उत्साह के साथ मनाया जाता है।
गुरु की शिक्षा ही है जो शिष्यों के जीवन भर काम आती है
गुरु की शिक्षा शिष्यों के जीवन भर काम आती है बल्कि उन्हें आगे बढ़ने और हर कठिन रास्तों से गुजरने के लिए आसान बनाती है । शिक्षक की बातें, नैतिकता ही ऐसी है जिसे शिष्य जीवन भर भूल नहीं पाता है। सनातन परंपरा में गुरु का नाम ईश्वर से पहले आता है, क्योंकि गुरु ही होता है जो आपको गोविंद से साक्षात्कार करवाता है, उसके मायने बतलाता है। जीवन को पार लगाने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है और उनके मिल जाने पर उन पर आजीवन विश्वास करना होता है। ऐसा इसीलिए क्योंकि गुरु की अग्नि भी शिष्य को जलाती नहीं है बल्कि उसे सही राह दिखाने का काम करती है। वैसे हर एक के जीवन में यू क्या अपना अलग स्थान होता है।
सभी के जीवन में एक गुरु या उस्ताद होते हैं। यदि आप इस गुरु पूर्णिमा पर किसी को अपना गुरु बनाने की सोच रहे हैं तो उससे पहले खूब सोच-विचार लें क्योंकि जीवन में गुरु सिर्फ एक बार बनाया जाता है। क्योंकि उनसे भी हम अपने जीवन में कुछ न कुछ सीखते रहते है। गु’ शब्द का वास्तविक अर्थ है अंधकार और ‘रु’ का मतलब है निरोधक। अर्थात जो अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाता है उसे गुरु कहते हैं। गुरु अपने शिष्यों को हर संकट से बचाने के लिए प्रेरणा देते रहते हैं, इसलिए हमारे जीवन में गुरु का अत्यधिक महत्व है।
इस बार गुरु पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त पर ऐसे करें पूजा और दान पुण्य
गुरु पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 4 जुलाई को दोपहर 11:33 बजे से होगा और समापन 5 जुलाई को सुबह 10:13 बजे होगा। इस बार गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्रग्रहण भी लग रहा है। इस दिन शुभ मुहूर्त में ही पूजा आदि का कार्य पूर्ण करें। गुरु पूर्णिमा पर होने वाली हर प्रकार की पूजा और अन्य दूसरे धार्मिक अनुष्ठानों को एक निर्धारित मुहूर्त के अनुसार ही करना उचित होगा। भगवान के पूजन में तुलसी, धूप, दीप, गंध,पुष्प व फल इत्यादि का उपयोग किया जाता है। सामर्थ्य के अनुसार, भक्ति भाव के साथ पूजा करनी चाहिए।
पूजा के पश्चात भगवान को विभिन्न प्रकार के पकवानों का भोग लगाना चाहिए। भोग को प्रसाद स्वरूप सभी लोगों के मध्य वितरित करना चाहिए। पूर्णिमा तिथि के उपलक्ष्य में भगवान सत्यनारायण का पूजन होता है और कथा को पढ़ा और सुना जाता है। इस कथा के पूजन द्वारा ही पूर्णिमा का व्रत संपूर्ण माना जाता है। 4 जुलाई को सत्यनारायण कथा होगी और चंद्रमा का पूजन किया जाएगा। आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन श्री हरि का पूजन होता है। जिस प्रकार आषाढ़ मास के समय आकाश बादलों से घिर जाता है तो उस अंधकार को दूर करने के लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार जीवन के अंधकार को दूर करने के लिए किसी गुरु का होना अत्यंत आवश्यक होता है।