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हनुमान जन्मोत्सव आज : तेल, सिंदूर एवं मदार के पुष्प-पत्र से कीजिए हनुमानजी की पूजा

न्यूज नजर । छोटे से लेकर बडों तक सभी को समीप के प्रतीत होने वाले भगवान अर्थात पवनपुत्र! पवनपुत्र का अन्य सर्वपरिचित नाम है हनुमान। शक्ति, भक्ति, कला, चातुर्य तथा बुद्धिमत्ता में श्रेष्ठ होते हुए भी प्रभु रामचंद्रजी के चरणों में सदैव लीन रहने वाले हनुमान के जन्म का इतिहास, हनुमान जयंती पूजाविधि तथा हनुमान उपासना का शास्त्र सनातन संस्था द्वारा संकलित इस लेख में जान कर लेंगे।

हनुमान जन्मोत्सव पर अन्य दिनों की तुलना में सहस्रगुना हनुमान तत्व कार्यरत रहता है। उसका लाभ लेने के लिए उस दिन हनुमानजी का श्री हनुमते नम: यह जप अधिकाधिक करें। वर्तमान में कोरोना की पार्श्‍वभूमि पर अनेक स्थान पर यह उत्सव सदा की भांति मनाने के लिए मर्यादाएं रह सकती हैं। प्रस्तुत लेख में कोरोना के संकटकाल में निर्बंधों में भी हनुमान जन्मोत्सव कैसे मना सकते हैं यह भी बताया गया है। हनुमान जन्मोत्सव की पार्श्‍वभूमि पर बलोपासना के साथ भगवान की भक्ति करने का संकल्प करेंगे।

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 जन्म का इतिहास 

राजा दशरथजी ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया। तब अग्निदेव यज्ञ से प्रकट हुए और दशरथ की रानियों के लिए खीर (यज्ञ में अवशिष्ट प्रसाद) प्रदान किया। अंजनी, जो दशरथ की रानी की तरह तपस्या कर रही थी, उन्हें भी यह प्रसाद मिला और इसी कारण हनुमान का जन्म हुआ। उस दिन चैत्र पूर्णिमा थी। यह दिन हनुमान जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

पवनपुत्र मारुतिने ‘हनुमान’ नाम कैसे धारण किया? 

वाल्मीकि रामायण में किष्किंधा कांड सर्ग 66 में इस विषय में दिया है। अंजनी को वीर्यवान्, बुद्धिसंपन्न, महातेजस्वी, महाबली और महापराक्रमी पुत्र हुआ। जन्म होने के बाद उगते सूर्य का लाल गोला देखकर उसे पका फल समझकर हनुमान ने आकाश में सूर्य की दिशा में उडान भरी। इस पर इंद्र ने क्रोधित होकर उन पर अपना वज्र फेंका। विशाल पर्वतों का चूर्ण करने वाले सामर्थ्यवान हनुमानजी ने केवल इंद्र के वज्र को मान देने के लिए उसे अपनी ठोडी पर झेल लिया और झूठमूठ के लिए मूर्छित हो गए। तब से उन्होंने हनुमान नाम धारण किया। हनुमान शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है हनुः अस्य अस्ति इति। अर्थात जिसकी ठोडी विशेष है, ऐसे वज्रांग (वज्र समान अंग है जिसका) कहलाने लगे। उसी का अपभ्रंश होकर बजरंग नाम पडा। हनुमान ने जन्म से ही सूर्यबिंब की ओर भरी उडान से कुंडलिनी शक्ति जागृत हो गई थी।

 हनुमान जन्मोत्सव की पूजाविधि

हनुमानजी का जन्मोत्सव सुबह सूर्योदय के समय मनाया जाता है। हनुमानजी की मूर्ति अथवा प्रतिमा की यथासंभव पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पद्धति से पूजा करनी चाहिए। सूर्योदय के समय शंखनाद कर पूजा आरंभ करें। भोग लगाने के लिए सोंठ और चीनी का मिश्रण ले सकते हैं। पश्‍चात वह मिश्रण प्रसाद के रूप में सबको बांट दें। हनुमानजी को मदार (रुई) के फूल-पत्तों का हार अर्पण करें। पूजा के उपरांत श्रीराम एवं श्रीहनुमान की आरती करें।

 हनुमानजी की उपासना के अंतर्गत विविध कृतियां

हनुमानजी के मूर्ति को तेल, सिंदूर, मदार के पत्ते व फूल अर्पण करने का कारण : ऐसा कहते हैं कि देवता को जो वस्तु भाती है, वही उन्हें पूजा में अर्पण की जाती है। तेल, सिंदूर एवं मदार के फूल तथा पत्ते इन वस्तुओं में हनुमानजी के सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण, जिन्हें पवित्रक कहते हैं, उन्हें आकृष्ट करने की क्षमता होती है। अन्य वस्तुओं में ये पवित्रक आकृष्ट करने की क्षमता अल्प होती है। इसीलिए हनुमानजी को तेल, सिंदूर एवं मदार के पुष्प-पत्र इत्यादि अर्पण करते हैं। कुछ स्थानों पर हनुमानजी को नारियल भी चढाते हैं।

हनुमानजी की पूजाविधि में केवडा, चमेली या अंबर, इन उदबत्तियों का उपयोग करें। हनुमानजी की अल्प से अल्प पांच या पांच की गुणा में परिक्रमाएं करें। स्थान के अभाव अथवा अन्य कारण वश परिक्रमा करना संभव न हो, तो अपने चारों ओर तीन बार गोल घूमकर परिक्रमा लगाएं।

आध्यात्मिक कष्ट एवं शनि ग्रह पीडा निवारणार्थ हनुमानजी की उपासना : शनि की साढेसाती के प्रभाव को न्यून (कम) करने के लिए हनुमानजी की पूजा करते हैं। आसुरी शक्तिया तथा आध्यात्मिक कष्ट से रक्षा करने हेतु हनुमानजी की उपासना विशेष फलदायी होती है। कष्ट को समूल अल्प करने के लिए हनुमानजी का नामजप निरंतर करना, यही एक उत्तम साधन है।

नामजप एवं हनुमान चालीसा का पाठ : हनुमान जन्मोत्सव के दिन नित्य की तुलना में हनुमान तत्व 1 सहस्र गुना सक्रिय रहता है। उससे अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए घर में सब लोग एक साथ बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करें। शेष समय श्री हनुमते नम: नामजप अधिकाधिक करें।

5. कोरोना काल में निर्बंध होने से हनुमान जयंती ऐसे मनाएं

अनेक भक्त हनुमान जयंती के उपलक्ष्य में प्रातः हनुमानजी के मंदिर में जाकर दर्शन करते हैं। सूर्योदय के समय हनुमान जन्म मनाया जाता है; परंतु कोरोना की पार्श्‍वभूमि पर की गई यातायात बंदी के कारण अनेक स्थान पर धार्मिक स्थल बंद हैं। इसलिए मंदिरों में जाकर दर्शन करना संभव नहीं है। ऐसे में हनुमान जयंती के उपलक्ष्य में घर पर ही श्री हनुमानजी की उपासना करें।

1. कलियुग में नामस्मरण सर्वोत्तम साधना बताई गई है। हनुमान जयंती के दिन हनुमान तत्त्व अन्य दिनों की तुलना में 1 सहस्रगुना अधिक मात्रा में कार्यरत रहता है। उसका आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होने के लिए ‘श्री हनुमते नमः’ यह नामजप अधिकाधिक भावपूर्ण करने का प्रयास करें।

2. जिनके घर हनुमान जन्म मनाया जाता है, उनको प्रातः श्री हनुमानजी की पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए। पूजा करने हेतु श्री हनुमानजी की मूर्ति अथवा प्रतिमा (चित्र) उपलब्ध न हो, तो किसी ग्रंथ के मुखपृष्ठ पर यदि हनुमानजी का छायाचित्र लगा कोई ग्रंथ अथवा ‘श्री हनुमते नम:’ नामपट्टी पूजा में रख सकते हैं। वह भी संभव न हो, तो पीढे पर रंगोली से ‘श्री हनुमते नमः’ लिख कर उसकी पूजा करें। शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध एवं उनसे संबंधित शक्ति एकत्र रहते हैं, ऐसा अध्यात्म का सिद्धांत हैं। उसके अनुसार हनुमानजी की मूर्ति में जो तत्व रहता है, वही शब्द में अर्थात श्री हनुमानजी के नामजप में भी होता है।

3. पूजा हेतु आवश्यक सामग्री मिलने में अडचन हो, तो उपलब्ध पूजा सामग्री से ही हनुमानजी की भावपूर्ण पूजा करें। यदि कुछ पूजा सामग्री उपलब्ध न हो, तो उसके स्थान पर अक्षता समर्पित करें। घर पर उपलब्ध हो, तो ईश्‍वर के सामने नारियल भी तोड सकते हैं। सोंठ का नैवेद्य दिखाना संभव न हो, तो अन्य मीठे पदार्थ का नैवेद्य दिखाएं।

बलोपासना कर हनुमानजी की कृपा प्राप्त करें

धर्म-अधर्म की लडाई में महत्त्वपूर्ण देवता अर्थात हनुमानजी! हनुमानजी ने त्रेतायुग में रावण के विरुद्ध युद्ध में प्रभु श्रीराम को सहकार्य किया जबकि द्वापर युग में महाभारत के भयंकर लडाई में वह कृष्णार्जुन के रथ पर विराजमान थे। हिंदुस्थान में मुगल सत्ता असीम अत्याचार कर रही थी, उस समय महाराष्ट्र में बलोपासना का महत्व अंकित करने हेतु समर्थ रामदासस्वामी ने हनुमानजी की मूर्ति की 11 स्थानों पर स्थापना की तथा हिंदुओं मेें ‘हिंदवी स्वराज्य’ स्थापित करने की चेतना जगाई। कोरोना से जो विदारक परिस्थिति आज निर्माण हुई है, उससे बलोपासना का महत्त्व ध्यान में आता है। इसलिए हनुमान जयंती की पार्श्‍वभूमि पर बलोपासना के साथ भगवान की भक्ति करने का संकल्प करेंगे।

संदर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ ‘श्री हनुमान’

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