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कुंभ में जूना अखाड़े ने दी 60 महिला नागा संन्यासियों को दीक्षा

कुम्भनगर। दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम कुम्भ में श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा में 60 महिला नागा संन्यासियों को दीक्षा दी गई।

अखाड़ों की आन-बान और शान समझे जाने वाले नागा सन्यासियों को दीक्षा देने की क्रम में बुधवार को जूना अखाड़े में संगम तट पर 60 महिला को नागा संन्यासी बनने की दीक्षा दी गई। संगम तट पर विभिन्न अखाड़े, महापुरूष, ब्रह्मचारी, संन्यासी, नागा और दिगम्बर बनाकर अपना कुनबा बढ़ाने में लगे हैं। महिला नागा सन्यासिन बनने से पहले महिला को छह से 12 वर्ष तक कठिन ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है।

अखाड़े के साधु-महात्मा महिला के घर और उसके पिछले जीवन के बारे में जांच पड़ताल करते हैं। इन सबके बाद गुरू यदि इस बात से संतुष्ट हो जाते हैं कि महिला ब्रह्मचर्य का पालन कर सकती है तो उसे दीक्षा दी जाती है। नागा साधुओं के अखाड़ों में महिला सन्यासियों को एक अलग पहचान और खास महत्व दिया जाता है। ये महिला साधु पुरूष नागाओं की तरह नग्न रहने के बजाए एक गेरूआ वस्त्र लपेटे रहती हैं।

महिला नागा सन्यासियों को बिना वस्त्रों के शाही स्नान करना वर्जित रहता है। इसलिए यह गेरूआ वस्त्र लपेटकर ही स्नान कर सकती हैं। जिस अखाड़े से महिला सन्यास की दीक्षा लेना चाहती है उसके आचार्य महामंडलेश्वर ही दीक्षा देते हैं।

जूना अखाड़े की महामंत्री शैलजा देवी ने सेक्टर-16 में गंगा किनारे बताया कि किसी भी पुरूष या महिला को नागा सन्यासी बनने से पहले उसे साधु का जीवन व्यतीत करना पड़ता है। लम्बे समय के बाद कई पड़ाव पार करने के बाद उन्हें नागा सन्यासी बनने की दी जाती है।

उसके बाद उनका गृहस्थी की दुनिया से कोई लेना देना नहीं रह जाता। उन्होंने बताया कि 60 नागा सन्यासियों को आचार्य द्वारा दीक्षा दी गई। सन्यास लेने वाले सन्यासिनियों को उनके इच्छा के अनुसार अखाडा़ चुनना होता है और उसी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर उन्हें दीक्षा देते हैं।

उन्होंने बताया कि पूर्व में सन्यांस धारण किए महिलाओं सन्यासियों को पूरे विधि-विधान से अखाडो की परम्परा के अनुसार उनका क्षौर क्रिया कराया गया। उसके बाद उनकी गो मूत्र, दही, भस्म, गोबर,चंदन और हल्दी दशविधि से स्नान कराया गया।

उसके बाद गंगा में स्नान कराया जाता है। इस स्नान के बाद उनके सारे पाप धुल जाते हैं। यह मनव जीवन में अलग-थलग संत परिवेश में जीवन जीते हैं। ये सभी अब आजीवन एक समय भोजन ग्रहण करेंगी और धरती पर शयन करेंगी।

शैलजा देवी ने बताया कि नागा संन्यासिनियों को जोड़ने की प्रक्रिया बहुत पहले से शुरू हुई थी। जिने ऐसे संन्यासिनियों को शामिल किया गया जो अपने गुरूओं की परीक्षा में पास हुई हैं। सम्पूर्ण दिन इन्हें व्रत रहना होता है।

उन्होंने बताया कि क्षौर संस्कार और पिण्डदान के बाद के बाद रात में विजया हवन संस्कार होगा। इसके बाद तीन चरण की प्रक्रिया से गुजरने के बाद मौनी अमावश्या को इनका पहला शाही स्नान होगा।

जूना अखाड़ा के उज्जैन के तीर्थपुराेहित (धर्म-कर्म) संजय बधेका ने बताया कि स्नान के बाद उन्हे बांधने के लिए एक कोपिन (लंगोटी) दी जाती है उसके ऊपर वह एक सफेद वस्त्र धारत करती हैं। इस क्रम में उनके सिर पर दही और हल्दी का लेप लगाया जाता है।

तीर्थ पुरोहित सन्यांसिनों पर कुश से दुग्ध का छींटा मारते हैं। ये सन्यांसिने अपना और अपने परिवार का पिण्डदान करती है। अपना और अपने परिजनों का पिण्डदान के बाद इनका परिजनों से सभी रिश्ते-नाते समाप्त हो जाते हैं।

उन्होंने बताया कि कुम्भ और अर्द्ध कुम्भ के दौरान नागा साधु बनाए जाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। हर किसी को नागा बनना संभव नहीं है। नागा साधु बनने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और संन्यासी जीवन जीने की प्रबल इच्छा होनी चाहिए। सनातन परंपरा की रक्षा करने और इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए अलग-अलग संन्यासी अखाड़ों में हर नागा साधु बनने की प्रक्रिया अपनाई जाती है।

उन्होंने बताया कि कुम्भ, अर्द्धकुम्भ, और सिंहस्थ कुम्भ के दौरान नागा साधु बनाए जाने की प्रक्रिया शुरू होती है। संत समाज के 13 अखाड़ों में से जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, आनंद और आवाहन अखाड़े ही नागा बनाते हैं।

इन सभी में जूना अखाड़ा ऐसा स्थान है जहां सबसे ज्यादा नागा साधु बनाए जाते हैं। उसके बाद अन्य अखाड़ो का नम्बर आता है। नागा साधु बनने के लिए सर्वप्रथम ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी जाती है। दीक्षा के बाद अखाड़े में शामिल होकर व्यक्ति तीन साल अपने गुरुओं की सेवा करता है।

बधेका ने बताया कि नागा साधु की प्रक्रिया प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन के कुम्भ और और कुम्भ के दौरान ही होती है। प्रयाग के कुम्भ में दीक्षा लेने वाले को नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वाले को बर्फानी, हरिद्वार में दीक्षा लेने वाले को खूनी नागा ओर नासिक में दीक्षा लेने वाले को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है। इन्हें अलग अलग नाम से इसलिए जाना जाता है ताकि उनकी पहचान हो सके किसने कहां से दीक्षा ली है।

गौरतलब है कि जूना अखाड़े में गत रविवार को 1100 नागा सन्यासियों को दीक्षा दी गई थी उसके बाद निरंजनी अखाड़े में 150 सन्यासियों को दीक्षित किया गया था।

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