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कायस्थ समाज आज कर रहा है चित्रगुप्त पूजा

पटना। समस्त संसार में अपनी समृद्ध संस्कृति और परम्पराओं के लिए एक अलग पहचान बनाने वाले भारत में मौसमों की तरह वर्ष भर कोई न कोई पर्व-त्योहार मनाया जाता रहता है लेकिन ‘चित्रगुप्त पूजा’ सभवत: एक ऐसा त्योहार है जिसे किसी जाति विशेष के लोग ही मनाते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कायस्थ जाति को उत्पन्न करने वाले भगवान श्री चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन हुआ । इसी दिन कायस्थ जाति के लोग अपने घरों में भगवान श्री चित्रगुप्त की पूजा करते हैं । उन्हें मानने वाले इस दिन कलम और दवात का इस्तेमाल नहीं करते । पूजा के आखिर में वे सम्पूर्ण आय-व्यय का हिसाब लिखकर भगवान को समर्पित करते हैं।

 


भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज के सहयोगी हैं । सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अत: ये ब्रह्मा कहलाये । इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया।
इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था । धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरूष उत्पन्न हुआ। इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा ।


भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल है । ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है। इस दिन भगवान चित्रगुप्त और यमराज की मूर्ति स्थापित करके अथवा उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धा पूर्वक सभी प्रकार से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर एवं भांति भांति के पकवान, मिष्टान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा करें और फिर जाने अनजाने हुए अपराधों के लिए इनसे क्षमा याचना करें ।यमराज और चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है ।
एक दिन बह्माजी ने श्री चित्रगुप्त से उनका परिचय पूछा तो वह बोला, ”मैं आप के शरीर से ही उत्पन्न हुआ हूं । आप मेरा नामकरण करने योग्य हैं और मेरे लिये कोई काम है तो बतायें ।” बह्माजी ने हंसकर कहा, ”मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुए हो इसलिये ‘कायस्थ’ तुम्हारी संज्ञा है और तुम पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से विख्यात होगे।”
धर्म-अधर्म पर धर्मराज की यमपुरी में विचार तुम्हारा काम होगा। अपने वर्ण में जो उचित है उसका पालन करने के साथ-साथ तुम संतान उत्पन्न करो। इसके बाद श्री ब्रह्माजी चित्रगुप्त को आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गये। बाद में चित्रगुप्त का विवाह एरावती और सुदक्षणा से हुआ। सुदक्षणा से उन्हें श्रीवास्तव, सूरजध्वज, निगम और कुलश्रेष्ठ नामक चार पुत्र प्राप्त हुये जबकि एरावती से आठ पुत्र रत्न प्राप्त हुये जो पृथ्वी पर माथुर, कर्ण, सक्सेना, गौड़, अस्थाना, अम्बष्ठ, भटनागर और बाल्मीक नाम से विख्यात हुये।