न्यूज नजर : बसन्त ऋतु का राजा बनकर कामदेव देवों की पूर्व निर्धारित योजना को लागू करने के लिए सृष्टि के महाकाल पर अपने कामबाणो से प्रहार करने लगा और महाकाल शिव को अपने जाल में फसाने का चक्रव्यूह बनाने लगा।
सभी देव चाहते थे कि शिव पार्वती से विवाह करे और उन से उत्पन्न पुत्र तारकासुर राक्षस को मारे ताकि हमें स्वर्ग का राज़ सिंहासन मिल जाये। इस हेतु अपने कामबाणो से प्रहार कामदेव करने लगा।
शिव ने देखा यह सब हरकते कामदेव की है जो देवो के काम और स्वार्थ को साधने के लिए मुझ पर काम के तीखे ओर असहनीय प्रहार कर रहा है। कामदेव के आखिरी प्रहार से शिव एकदम विचलित हो गये और क्रोध में आ कर अपना तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया।
कथा के माध्यम से शिव ने संदेश दे दिया कि अपना काम क्रोध लोभ मोह और अपना स्वार्थ तथा अंहकार साधने के लिए दूसरो को कुचलने का प्रयास नहीं करना चाहिए अन्यथा सर्वत्र नकारात्मक माहौल बन कर मानवीय मूल्यों के धर्म को भस्म कर देगा, भले ही फिर प्रायश्चित ओर दान पुण्य तर्पण और श्राद्ध करते रहो ओर खुद को दिलासा देते रहो।
बदलता हुआ काल चक्र ऋतुओं का भेदन करता हुआ बसंत और फाल्गुन को ले आया, पर बसंत और फाल्गुन अपनी रूहानियत का माहौल नहीं बना पा रहा है। बसंत और फाल्गुन के कुछ पक्षधर भले ही माहौल को फूलों से सजाने और रंग गुलाल से खेलने का बना रहे हैं पर जमीनी हकीकत में हवाएं उस माहौल को बनाने में सफल नहीं हो पा रही है जिसमें यह भान हो जाय कि अब ऋतुओं का राजा बंसत आ गया है। ऐसा लगता है कि कुदरत का तंत्र अभी बसंत को राजा बनाने में अपनी इच्छा को प्रकट नहीं कर पा रहा है, चन्द जिज्ञासु ही बंसत को राजा बनाने में जुटे हुए हैं और उसका बढ चढ़ कर गुणगान कर रहे हैं।
गरमी में झुलसा जीव ओर तूफानी वर्षा में पीटा हुआ मन तथा शिशिर में सिकुड़ा और मार खाया हुआ जीव अभी तक अपनी पीड़ा से उभर नहीं पा रहा है, धीरे-धीरे अपने तंत्र को सुधारने में लगा हुआ है। बंसत की उमंग और फाल्गुन की मस्ती से वो अभी परे है और हर नए मोसमी धोखे से बचना चा रहा है। बसंत तो फिर भी बदलेगा ही पर मन में फाल्गुन की मस्ती का वो माहौल नहीं बन पा रहा है कारण हर अच्छा होने की आस में जीव हर बार घायल हो रहा है।
हर एक पल गुजर गया हर एक अच्छे पल की तलाश में। चंद माहौल बदलने वालो ने मानो ऐसा ठेका ले लिया है कि वो सब कुछ बदल देगे ओर बसंत को सुहाना ओर फाल्गुन को मस्ताना बना देंगे। जीवन के कई बसंत निकल गये ओर फाल्गुन की मस्ती में चंद लोग संवर गये जो बंसत को अपने अनुकूल बदलने की क्षमता रखते थे। शेष बसंत और फाल्गुन की मस्ती को ढूंढते ही रह गये ओर ढूंढते ढूंढते थक गए तथा हर बसंत ओर फाल्गुन से डरने लग गये।
फाल्गुन तो अपने समापन की ओर बढ रहा है ओर ॠतुराज बंसत आने के बाद अपना माहौल अपने अनुसार नहीं बना पा रहा है क्यो कि वो फाल्गुन के धोखे में अंधा होकर अपनी झूठी जय जय कार करवा रहा है भले ही माहौल ठंडा ओर ठिठुरने वाला बनता जा रहा है। वो सूरज की बढ़ती गरमी में ही बस खुश हुए जा रहा है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव भगवान शिव पार्वती को कहते हैं कि देवी मैं सदा तप जप में लगा रहता हूं और प्रकृति का हर क्षण नाश करता हूं ताकि प्रकृति शक्ति अपनी कृति को सही ढंग से संचालित करतीं रहे। इसी कारण मैं पृथ्वी जगत में रूद्र बन कर जीवों का नाश करता हूं और प्रकृति की हर रचना की अति को नष्ट करके प्रकृति को संतुलित रखता हू। इस कारण ही मैंने कामदेव को भस्म किया ओर संदेश दिया कि अपने स्वार्थो को सिद्ध करने के लिए अति का अंत केवल विनाश ही होता है और देव दानव ओर मानव का काम प्रकृती को संजोये रखने उसे बनाये रखने का होता है विनाश का नहीं।
इसलिए हे मानव जगत में तुझे सदा ही काम क्रोध लोभ लालच मोह ओर अंहकार घेरे रहेंगे क्यो कि यह मानव की मनोवृत्तियां है पर इन सब को साधने के लिए तू किसी की खुशियों से मत खेल ओर संयमित बन कर अपने हितों को साध और मानव धर्म के मूल्य को बनाये रख। बसन्त ऋतु और फाल्गुन को तू दिवाना, मस्ताना बना कर अपनी भूमिका का निर्वाह कर ताकि होली के दिन अति करता हुआ कामदेव भस्म हो जाये और तेरे दिल का काम क्रोध लोभ लालच मोह ओर अंहकार संतुलित हो कर प्यार के रंग गुलाल लगा कर सबको एक ही रंग में रंग ले ।