न्यूज नजर : जिस रण भूमि मे जंग लगी तलवारें जब हार और जीत के महायुद्ध करती है तो ऐसा भान होता है कि दोनों ही सेनाएं भाग्य ओर भगवान के भरोसे ही युद्ध करेंगी क्योंकि जंग लगीं हुई तलवारो से युद्ध नहीं होते। जंग लगी तलवारें आखिर टूट जातीं हैं और योद्धा वाक् युद्ध कर एक दूसरे के पूर्वजों के इतिहास का वखान करने लग जाते हैं, जिसने जितनी जयादा कमियां गिनाई उसे ही विजयी मान लिया जाता है। ऐसे रण मैदान में नीतियां ओधे मुंह पडी रहती है और उपलब्धियां धूल उडा कर अपनी इतिश्री कर लेतीं हैं।
ऐसे युद्धों में राजा शाही पोशाक पहन सर्वत्र होली के बादशाह की तरह रथों में बैठ सर्वत्र केवल गुलाल उडा उडा कर जमीन को केवल लाल पीली कर देते हैं और हर राहगीर को अपने रंग से रंग देते हैं। होली के बादशाह की बस यही कहानी होती है। जंग लगी तलवारें और होली का बादशाह तो मात्र अपनी रस्म अदायगी करते हैं।
प्राचीन काल की कहानियां कुछ ऐसा ही चित्रण करती है। एक राज्य में एक राजा को मंत्रीगण बताते हैं कि हम प्रगति के परवान पर चढ़ गए हैं और हर जन साधारण सुखी ओर समृद्ध है और दुश्मन राज्य हम से डरे हुए हैं हम सब क्षेत्रों में अग्रणी है। अपने राज्य के शुभ समाचार मंत्रियों से सुन कर राजा खुश हो जाता था। एक बार राजा नगर भ्रमण करता है तो उसे हर गली मोहल्ले गांव कस्बे ओर शहर के मकानों के बाहर यह लिखा हुआ मिलता है कि “हमारा कोई घणी धोरी नहीं है”। राजा हर जगह यह देख हैरान था कि आखिर यह क्यो लिखा हुआ है। एक दिन राजा भेस बदल कर निकला ओर एक राहगीर से पूछा कि हे भाई ये सब हर जगह क्यो लिखा हुआ है तब राहगीर बोला कि लगता है कि तुम किसी दूसरे राज्य में आये हो इसलिए ये सवाल पूछ रहे हो।
राहगीर बोला हे भाई हमारे यहां जो भी होता है उसे ठीक मान लिया जाता है और जो नहीं भी हो रहा है उसे भी ठीक मान लिया जाता है और सही मायने में कुछ भी ठीक नही होता है और हमारा बादशाह भी होली के बादशाह की तरह केवल गुलाल उडाते हुए निकलता है और उस गुलाल की धूल में उसे कुछ भी लिखा हुआ नजर नहीं आता। हम यही सोच कर यह लिखते है कि कभी तो कोई यह पढ़कर हमारा घणी धोरी होगा।
संत जन कहते हैं कि हे मानव जब हमारे घर से आवाज आने लग जाती हैं कि इस घर का कोई घणी धोरी नहीं है तो भी घर का मुखिया यदि कोई परवाह नहीं करता है तों शनैः शनैः उस घर में सभी लोग नियंत्रण से बाहर हो कर मनमानी करने पर उतारू हो जाते हैं और उस घर का मुखिया बस होली के बादशाह की तरह केवल रस्म अदायगी करता है और सदा के लिए अपना अस्तित्व गंवा देता है। मुखिया के ही नियंत्रण की तलवारें जब जंग खा जाती है तब जंग लगी तलवारें विरोध को काबू में नहीं कर सकती है।
इसलिए हे मानव तू अपने दायित्वों का निर्वाह अपनी परिस्थिति के अनुसार कर। भूमिका का सफल मंचन कर तब ही तेरे अस्तित्व को जाना जायेगा और स्वीकारा जायेगा अन्यथा एक दिन तूझे भूमिका संघर्ष का भारी सामना करना पडेगा । घर के मुखिया से हर मुखिया तक यदि व्यक्ति खुद हर समस्याओं के सामाधान के लिये उचित कदम नही उठाता है और अपने भय से डराने के काम करता रहता है तो मजबूत मुखिया का पतन उसके घर से ही शुरू हो जाता है। इस कारण हे मानव तू धणी धोरी बन कर अपनी हर भूमिका को निभा अन्यथा तेरे भय की तलवार एक दिन भारी जंग खा कर भरी महफिल में तुझे मात दे देगी।