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आत्मा व शरीर के मिलन से पैदा होता है मन और फिर मनमानी

न्यूज नजर : प्रकृति पंच महाभूतों का मंथन करके शरीर रूपी कलश का निर्माण करती है और उसमें आत्मा रूपी अमृत डाल कर शरीर को चेतन कर देती है। आत्मा व शरीर के मिलन से मन उत्पन्न होता है और मन अपनी जन्मजात वृत्तियों से शरीर का संचालन करने लग जाता है।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

यथा भूख लगना रोना हंसना आदि चौदह मनोवृत्तियों से इस शरीर को अपने शिंकजे कस लेता है। शरीर मन के बस में हो जाता है और उसका आत्मा से तालमेल और समायोजन का अनुपात शनैः शनैः बिगडने लगता है और एक दिन ये मनोवृत्तियां शरीर रूपी कलश को तोड़ देती है तथा आत्मा रूपी अमृत प्रकृति में विलीन हो जाता है।

इस मन को नियंत्रित रखने के लिए धर्म और विज्ञान ने अपने अपने तरीके बताए हैं फिर भी मन मोह में लगा ही रहता है, यह जानते हुए भी कि एक दिन आत्मा चली जाएगी और मेरे भी अस्तित्व का अंत हो जाएगा। प्रकृति की अपनी रचना बड़ी निराली है। असंख्य जीवों को उत्पन्न करने के बाद भी उसने सभी प्राणियों मे कुछ विशेष बातों में भिन्नता रखी। दो लगभग समान शक्ल सूरत बनाई लेकिन उनकी कार्य करने की क्षमता बहुत अलग अलग रखी।

कई धार्मिक कथाओं के मंचन तथा बहुरूपियों का अपने को कई रूपों में ढाल लेना, ये कुछ तथ्य इस बात को प्रमाणित करते हैं कि उसका मूल व्यक्तित्व नहीं बदल सकता है, उसका मन नहीं बदल सकता, बस कुछ समय के लिए जनसमूह की भावना को आकर्षित कर लेता है लेकिन सच्चाई कुछ और ही होती है। हकीकत की दुनिया में उसे उस रूप में नहीं स्वीकार किया जाता है।

महाभारत के युद्ध में राजा पोडंरिक का नाम भी इसी प्रकार चर्चा का विषय बना रहा। वो श्रीकृष्ण के शक्ल सूरत का तथा कुछ मायावी विद्या का जानकार था। उसने भी श्रीकृष्ण का रूप धारण कर लिया तथा अपने आप को ही असली कृष्ण कहना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं बल्कि असली कृष्ण को नकली बताना शुरू कर दिया तथा उनका अपमान करना शुरू कर दिया।

वह दुर्योधन का सलाहकार बन कर पांडवों के खिलाफ षडयंत्र करने लगा। एक बार श्रीकृष्ण व पांडव के विरोध में दुर्योधन के साथ पोडंरिक भी आ गया। पोडंरिक ने श्रीकृष्ण का बहुत अपमान किया और श्रीकृष्ण की चेतावनी के बाद भी वह नहीं माना तब श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से काल की ओर ढकेल दिया।

संतजन कहते हैं कि हे मानव, श्रीकृष्ण तो एक महान योगी थे। उनके दर्शन की झलक आज भी विश्व में विद्यमान है। उनकी राजनीति, कूटनीति, अर्थ नीति, जन कल्याण की भावना को कोई आज तक छू भी नहीं सका। बिना अहंकारी, मृदु व सुशील वाणी, अपनी मौलिकता में रहते हुए महाभारत को ही नहीं दुनिया को जीतकर अपनी अमर यादगार छोड गए।

इसलिए हे मानव, शरीर रूपी कलश एक दिन टूट जाएगा और आत्मा रूपी अमृत जो प्राण वायु रूप में हैं वह बहेगा नहीं उड जाएगा। इसलिए हे मानव जितना भी हो सके मन में लालसा की उड़ान को रोक और उत्तरायन के सूर्य की तरह जीवन में आगे बढ तथा कल्याण कर।

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