पितु निमित विशेष मंत्र: ॐ भूतभव्यभवत्प्रभवे नमः॥
आज शुक्रवार 8 सितम्बर आश्विन कृष्ण तृतीया पर तीज का श्राद्ध मनाया जा रहा है। शास्त्र याज्ञ-वल्क्य-स्मृति के अनुसार मूलतः श्राद्ध होम, पिण्डदान व तर्पण से अधिक तार्किक है वास्तविकता में पितृगण साक्षात वसु, रुद्र व आदित्य रूप में श्राद्ध के देवता हैं। मूलतः मनुष्य के तीन पूर्वज हैं पिता, पितामह व प्रपितामह; अतः श्राद्ध करते समय उनको पूर्वजों का प्रतिनिधि माना जाता है।
मान्यतानुसार वसु, रुद्र व आदित्य श्राद्धकर्ता में प्रवेश करके व रीति-रिवाजों के अनुसार कराए गए श्राद्ध से तृप्त होकर अपने वंशधर को सपरिवार सुख-समृद्धि का आर्शीवाद देते हैं। श्राद्ध कर्म में उच्चारित मंत्रों व आहुतियों को वे पितृगण तक ले जाते हैं। तृतीया श्राद्ध के विधिवत पूजन, पिंड व तर्पण से व्यक्ति को सद्बुद्धि, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
तृतीया श्राद्ध विधि
तृतीया श्राद्ध में तीन ब्राह्मणों को भोजन करवाने का मत है। श्राद्ध में गंगाजल, कच्चा दूध, तिल, जौ तुलसी पत्र व शहद मिश्रित जल की जलांजलि दें। तदुपरांत पितृगणों का विधिवत पूजन करें। गौघृत का दीप करें, सुगंधित धूप करें, चंदन व गुलाबी फूल चढ़ाएं। कढ़ी, भात, खीर, पूड़ी व सात्विक सब्जी का भोग लगाएं। तदुपरान्त पिता से आरंभ कर अन्तिम पीढ़ी के सभी दिवंगत पितृगण का नामोच्चारण करते हुए स्वधा शब्द से अन्न जल की आहुति दें। पितृ के निमित लक्ष्मीपति का ध्यान करते हुए गीता के तीसरे आध्याय का पाठ करें व उनके निमित इस विशेष पितृ मंत्र का यथा संभव जाप करें। निमंत्रित ब्राह्मण का सत्कार कर भोजन करवाएं। शक्कर, चावल व सफ़ेद वस्त्र, व उचित दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें।
तृतीया श्राद्ध मुहूर्त
तृतीया तिथि प्रातः 10:43 से शुरू होकर शनिवार दी 09.09.17 को प्रातः 09:12 तक रहेगी चंद्र मीन राशि व उ.भाद्र नक्षत्र में रहेगा, राहुकाल प्रातः 10:45 से दिन 12:18 तक है जिसमें तर्पण वर्जित है। ऐसे में व्यवस्था है कि राहुकाल से पूर्व व पश्चात तर्पण व पिण्डदान करें। श्राद्ध हेतु श्रेष्ठ तीन मुहूर्त इस प्रकार हैं; कुतुप दिन 12:18 से दिन 12:43 तक, रौहिण दिन 12:43 से दिन 13:32 तक, अपराह्न दिन 13:32 से दिन 16:01 तक।