आज गणगौर पर्व मनाया जा रहा है। यह पर्व मां पार्वती व भगवान शिव की पूजा का पर्व है। पूजन में मां गौरी के दस रुपों की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने वाले व्यक्ति के घर में संतान, सुख और समृ्द्धि की वृ्द्धि ज़रूर होती है। इस खास दिन कुंवारी लड़कियां व शादी-शुदा महिलाएं अखंड सौभाग्य का वरदान मांगती हैं।
चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही गणगौर का त्योहार मनाया जाता है। यूं तो भारत में गणगौर का पर्व कई राज्यों में मनाया जाता है, लेकिन इस त्योहार की अनोखी रौनक राजस्थान में देखने को मिलती है। यहां गणगौर पूजा की तैयारियां रंगों का त्योहार होली से ही शुरू हो जाती है।
गणगौर पूजा के ज़रिए मां पार्वती ने अपनी कड़ी तपस्या व पूजन से भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था। गणगौर पूजा के दौरान गणगौर के फल को ही प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।
यह खास प्रसाद सिर्फ महिलाओं और बच्चियों द्वारा ही ग्रहण किया जाता है। वहीं, पुरुषों को लिए गणगौर का प्रसाद खाना निषेध होता है।
गणगौर पूजन सिर्फ महिलाओं द्वारा ही किया जाता है ताकि जिनकी शादी नहीं हुई है उन्हें सुयोग्य वर की प्राप्ति हो और जो शादीशुदा हैं उनके पति को दिर्घ आयु का आशीर्वाद प्राप्त हो। गणगौर का प्रसाद इसी खास पूजन का फल समझा जाता है और इसी कारण से गणगौर का प्रसाद सिर्फ और सिर्फ महिलाओं को ही ग्रहण करने की अनुमति होती है। यही नहीं, धार्मिक मान्यता के अनुसार यह प्रसाद पुरुषों को भूलकर भी नहीं देना चाहिए।
गणगौर व्रत करने के नियम
चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को सुबह-सुबह नहाकर गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना शुरु कर दें।
इस खास दिन से विसर्जन तक व्रती को एकासना यानी कि सिर्फ एक समय ही भोजन करना चाहिए।
इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव या ईसर का रूप माना जाता है।
जब तक गौरीजी का विसर्जन नहीं हो जाता है करीब आठ दिन तब तक प्रतिदिन दोनों समय गौरीजी की विधि-विधान से पूजा किया करें और उन्हें भोग लगाएं।
साथ ही गौरी, उमा, लतिका, सुभागा, भगमालिनी, मनोकामना, भवानी, कामदा, भोग वर्द्विनी और अम्बिका… मां गौरी के सभी रुपों की पूरी श्रद्धा व आस्था के साथ पूजा करनी चाहिए।
इस व्रत को करने वाली स्त्रियों को दिन में केवल एक बार ही दूध ग्रहण करना चाहिए।
गौरीजी की इस स्थापना पर सुहाग की सारी वस्तुएं जैसे कि कांच की चूड़ियां, सिंदूर, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि अवश्य से चढ़ाएं।
सुहाग की सामग्री को चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण कर दें।
इसी के साथ मां गौरी को भोग भी लगाया जाता है और भोग के बाद गौरीजी की कथा कही जाती है।
कथा सुनने के बाद गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियों को अपनी मांग भर लेनी चाहिए।
चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) को मां गौरी को किसी नदी, तालाब या फिर सरोवर पर ले जाकर स्नान ज़रूर कराना चाहिए।
चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को पहले स्नान कराएं और फिर उन्हें सुंदर से वस्त्राभूषण पहनाएं और पालने में बिठा दें।
इसी खास दिन शाम को एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब या फिर सरोवर पर ले जाकर विसर्जित भी कर दें और विसर्जन के बाद इसी दिन शाम को उपवास भी आप खोल लें।