सन्तोष खाचरियावास @ पहलगाम
श्राइन बोर्ड बरसों से श्री अमरनाथ यात्रा को सहज, सुगम और सुरक्षित बनाता रहा है मगर इस बार गत 7 जुलाई से यात्रा अत्यधिक कष्टदायी और मानसिक प्रताड़ना वाली बना दी गई है। जेके पुलिस और जिला प्रशासन के अफसरों की अदूरदर्शिता देखने को मिली।
हमारा ग्रुप 7 जुलाई को भगवती नगर पहुंचा। उस शाम पता चला कि रामबन में बारिश से सड़क बह गई, इस कारण 9 जुलाई की सुबह यात्रा रवाना नहीं की जाएगी। वहाँ हमें 4 दिन रोका। अगर रोजाना स्पष्ट अनाउंसमेंट हो जाता कि यात्रा शुरू होने में 3-3 दिन लगेंगे तो यात्री संशय में नहीं रहते और वापस लौट सकते थे। मगर वहां रोज रात को कूटनीतिक अनाउंस हो रहा था कि -खराब मौसम के कारण कल सुबह यात्रा स्थगित रहेगी। परसों के बारे में कल बताया जाएगा।
11 जुलाई की दोपहर सभी जत्थों को एक साथ रवाना किया तब भी नहीं बताया कि हमें रामबन में रोका जाएगा। यदि बता दिया जाता तो जिसकी मर्जी होती, वह लौट सकता था। शाम 4 बजे हम रामबन पहुंचे। हालांकि रामबन में बहुत अच्छी सुविधा और सेवा मिली। उसके लिए सीआरपीएफ का आभार।
12 जुलाई को हम सुबह 11 बजे पहलगाम बेसकैम्प पहुंचे। अगर उसी दिन कुछ यात्रियों को चन्दनबाड़ी भेज दिया जाता तो बेसकैम्प में ज्यादा भीड़ नहीं होती।
13 जुलाई की सुबह 3 बजे से 6 बजे तक सभी को लाइन में लगाया और जब बेसकैम्प से बाहर निकाला तो बाहर पर्याप्त टैक्सियां नहीं थीं। बेसकैम्प से छोड़े गए हजारों यात्री परेशान हो रहे थे। हम पैदल ही टैक्सी स्टैंड की तरफ बढ़े तो आगे मुख्य सड़क पर पुलिस ने कांटों की बाड़ लगाकर यात्रियों को रोक रखा था। उन्हें बेसकैम्प की तरफ नहीं आने दिया जा रहा था।
हमने दो पुलिस कर्मियों से पूछा कि हम पैदल चन्दनबाड़ी जा सकते हैं क्या। उन्होंने कहा-आराम से जा सकते हो, सिर्फ 45 मिनट में पहुंच जाओगे।
उन पर विश्वास करके हम जैसे ही कांटों की बाड हटवाकर भीड़ में घुसे तो पता चला कि हजारों यात्रियों को सड़क पर ही बंधक बना रखा है। हम भी बंधक बन गए। नाराज यात्रियों ने जाम लगा दिया। इस पर पुलिस कर्मियों ने दो-चार यात्रियों को डंडे मार दिए। वहाँ तैनात आईपीएस अधिकारी आशीष को यात्रियों से माफी भी मांगनी पड़ी।
हम यह जानना चाह रहे थे कि जब पर्याप्त टैक्सियां नहीं थी तो हमें बेसकैम्प से बाहर क्यों निकाला? बाहर से वापस बेसकैम्प में एंट्री क्यों नहीं दी जा रही? अगर हम होटलों में भी जाना चाहें तो भी हमें विपरीत दिशा में नहीं जाने दिया जा रहा है? लेकिन आईपीएस आशीष कोई जवाब नहीं दे रहे थे, सिर्फ हमें सड़क के दोनों तरफ वाहनों के गुजरने के लिए रास्ता छोड़ने की कह रहे थे। करीब दो घण्टे बाद बाड़ हटाकर सभी यात्रियों को होटलों में जाने की कह दिया।
अफसरों ने यात्रियों को यह नहीं बताया कि पर्ची सिस्टम बदलने के कारण आज गिने-चुने यात्री ही चन्दनबाड़ी पहुंच सके थे। टैक्सी यूनियन ने हड़ताल कर दी थी। आज केवल बाहर ठहरे यात्री ही चन्दनबाड़ी पहुंच सके थे। बेसकैम्प वाले सभी यात्री वही बाहर ही अटक गए थे।
किस्मत से हमें एक टैक्सी मिली जिससे हम 9 यात्री जिनमें 2 महिलाएं भी थीं, सुबह पौने दस बजे चन्दनबाड़ी पहुंच गए, लेकिन उससे पहले ही वहां तैनात जवानों ने टैक्सी को यह कहकर वापस नीचे लौटा दिया कि आज गेट जल्दी बंद हो गया है।
निराश होकर हम नीचे लौटे और होटल में रात बिताई।
14 जुलाई की सुबह होटलों में ठहरे हजारों यात्री 4 किलोमीटर पैदल चलकर बेसकैम्प के बाहर टैक्सी लेने एकत्र हुए तो पुलिस ने यह कहकर एक गार्डन में भर दिया कि गार्डन के दूसरे गेट से टैक्सियों में छोड़ा जाएगा। जैसे ही सभी यात्री गार्डन में घुसे कि ताला लगाकर सभी यात्रियों को गार्डन में बंधक बना लिया। यात्रियों को अंगेज रखने के लिए दूसरे गेट पर चार-पांच टैक्सियां बुलाई और एक-दो यात्रियों को बाहर निकालकर वापस गेट बंद कर रहे थे।
पुलिस की पॉलिसी से यही लग रहा था कि वह गेट नहीं खोलना चाह रहे थे। इसी बीच बेसकैम्प के यात्रियों को चन्दनबाड़ी के लिए छोड़ दिया।
इधर दो घण्टे तक गार्डन में गेट के पास हजारों यात्रियों की भीड़ रही जिसमें धक्का मुक्की होती रही। कई महिलाएं, किशोरियां और बुजुर्ग भी भीड़ में फंसे रो रहे थे। हम भी घबराकर बड़ी मुश्किल से भीड़ से बाहर निकले और यात्रा अधूरी छोड़कर लौटने का फैसला किया।
इसके बाद गार्डन में बंधक बने सभी यात्रियों को चन्दनबाड़ी भेजा जाने लगा। हम जैसे सैकड़ों यात्री यह सोचकर टैक्सियों में नहीं बैठे कि यहाँ की हजारों की भीड़ को ऊपर भेजा जा चुका है तो ऊपर शेषनाग में जबरदस्त अव्यवस्था होगी। ऊपर से बारिश का अलर्ट भी था। चूंकि अफसरों को आदेश मिला था कि आज बेसकैम्प को खाली कराना है और बाहर होटल में फंसे यात्रियों को भी ऊपर भेजना है, सो हमें भी जबर्दस्ती टैक्सी में बैठाने की कोशिश की, मगर हम नहीं गए।
गार्डन से निकलकर हम बेसकैम्प के मुख्य द्वार पर पहुंचे। वहां पुलिस के एक अफसर को बताया कि हम यात्रा अधूरी छोड़कर जेकेएसआरटीसी की बस से जम्मू लौटना चाहते हैं। तो उस अफसर ने यह कहकर गुमराह किया कि अभी 11 बजे यहां बाहर से बस मिलेगी, इसलिए एक तरफ खड़े हो जाओ। हमने कहा-हमें बेसकैम्प में जाने दीजिए, हम कल सुबह कॉन्वॉय के साथ जम्मू लौट जाएंगे लेकिन हमें बेसकैम्प में नहीं लौटने दिया।
बाद में जैसे तैसे हम बेसकैम्प में पहुंचे। दोपहर 2 बजे जम्मू की टिकट कटवाई। रात टेंट में रुके और 15 जुलाई की सुबह कॉन्वॉय के साथ जम्मू के लिए रवाना हुए।
उपरोक्त घटनाक्रम में पुलिस और श्राइन बोर्ड के अफसरों की मनमानी और अदूरदर्शिता साफ झलकी। बेहतर होता कि जम्मू से ही सोच विचारकर जत्थों को ऊपर रवाना किया जाता। यात्रियों से पूरी सूचना शेयर की जाती तो इतनी अव्यवस्था नहीं होती। जिनके पास अतिरिक्त समय होता, वे रुक जाते और बाकी लौट सकते थे।
पहलगाम में टैक्सी यूनियन की हड़ताल के बारे में किसी को कुछ नहीं बताया। अगर पर्याप्त टैक्सियां नहीं थी तो हमें बेसकैम्प से बाहर नहीं छोड़ा जाना चाहिए था। हमें यूं होटलों और रेन बसेरो में रात रुकने के नहीं भटकना पड़ता।
आप सभी परिस्थितियों पर विचार कर 13 और 14 जुलाई के घटनाक्रम के लिए जिम्मेदार अफसरों के निर्णय की समीक्षा कर उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। ताकि इस पवित्र यात्रा के यात्रियों का श्राइन बोर्ड के प्रति विश्वास कायम रह सके।