महुआ आदिवासी जनजातियों का कल्प वृक्ष है। मार्च-अप्रेल के माह में महुआ के फूल झरते हैं। ग्रामीण महिलाएं टोकनी लेकर भोर में ही महुआ बीनने चली जाती हैं। दोपहर होते तक 5 से 10 किलो महुआ बीन लिया जाता है।
शराब के लिए मशहूर
महुआ से बनाया हुआ सर्वकालिक, सर्वप्रिय पेय मदिरा ही है। हर आदिवासी गाँव में महुआ की मदिरा मिल जाती है। इसका स्वाद थोड़ा कसैला होता है पर खुशबू सोंधी होती है। चुआई हुई पहली धार की एक कप दारू पसीना लाने के लिए काफी होती है। इसकी डिग्री पानी से नापी जाती है मसलन एक पानी, दो पानी कहकर। महुआ की रोटी भी बनाई जाती है, रोटी स्वादिष्ट बनती है पर रोज नहीं खाई जा सकती। महुआ के लड्डू भी स्वादिष्ट होेते हैं ।
महुआ बसंत ऋतु का अमृत फल है। महुआ वातनाशक औरपाष्टिक तत्व वाला होता है। यदि जोड़ों पर इसका लेपन कियाजाय तो सूजन कम होती है और दर्द खत्म होता है। इससे पेट की बीमारियों से मुक्ति मिलती है। कूंची से सूखकर गिरने वालेफूल स्वाद में मधु के जैसा लगता है। इसे आप गरीबों का किशमिश भी कह सकते हैं। महुआ के ताजे फूलों का रसनिकालकर उससे बरिया, ठोकवा, लप्सी जैसे अनेक व्यंजन बनाये जाते हैं। इसके रस से पूरी भी तैयार होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में महुआ जैसे बहुपयोगी वृक्षों की संख्या घटती जा रही है। जहां इसकी लकड़ी को मजबूत एवं चिरस्थायी मानकर दरवाजे, खिड़की में उपयोग होता है वहीं इस समय टपकनेवाला पीला फूल कई औषधीय गुण समेटे है। इसके फल को मोइया कहते हैं, जिसका बीज सुखाकर उसमें से तेल निकाला जाता है। जिसका उपयोग खाने में लाभदायक होता है।
खाओ चाहे पीओ
महुआ भारतवर्ष के सभी भागों में होता है । इसका पेड़ ऊंचा और छतनार होता है। मुझे तो बेहद आकर्षक भी लगा। इसके फूल, फल, बीज लकड़ी सभी चीजें काम में आती है । यह पेड़ बीस- पचीस वर्ष में फूलने और फलने लगता और सैकडों वर्ष तक फूलता-फलता है । इसकी पत्तियां फूलने के पहले फागुनचैत में झड़ जाती हैं । पत्तियों के झड़ने पर इसकी डालियों के सिरों पर कलियों के गुच्छे निकलने लगते हैं जो कूर्ची के आकार के होते है । इसे महुए का कुचियाना कहते हैं । कलियों के बढ़ने पर उनके खिलने पर कोश के आकार का सफेद फूलनिकलता है जो गुदारा और दोनों ओर खुला हुआ होता है और जिसके भीतर जीरे होते हैं । महुए का फूल बीस बाइस दिन तक लगातार टपकता है । महुए का फूल बहुत दिनों तक रहताहै और बिगड़ता नहीं । महुए के फूल को पशु, पक्षी और मनुष्यसब इसे चाव से खाते हैं । गरीबों के लिये यह बड़ा ही उपयोगीहोता है । लोग सुबह जल्दी उठकर महुआ चुन लेते हैं नहीं तो गाय और बकरी इसे चर जाते हैं। महुआ का एक ही अर्थ या कहें उपयोग हमारे दिमाग में बैठा हुआ है कि इससे शराब बनता है।
महुए की शराब को संस्कृत में माध्वी और देसी में ठर्रा कहते हैं। जब तक महुआ गिरता है, तब तक गरीबों का डेरा उसके नीचे रहता है। यह गरीबों का भोजन होता है। खास तौर पर जब बारिश में कुछ और खाने को नहीं होता। गोंड जाति के लोग इसकी पूजा करते हैं। उनके जीवन में महुआ का बहुत महत्व है। पहले महुआ के बहुत पेड़ होते थे। कई जंगल भी। अबखेती के कारण पेड़ काट दिए गए हैं। वास्तव में यह एक ऐसापेड़ है जो कि बहुउपयोगी है और आदिवासियों के जीवन कासंबल भी। मधुमास महुआ के फूलने और फलने का होता है। महुआ फूलने पर ॠतुराज बसंत के स्वागत में प्रकृति सज-संवरजाती है, वातावरण में फूलों की गमक छा जाती है, संध्या वेलामें फूलों की सुगंध से वातावरण सुवासित हो उठता है, प्रकृति अपने अनुपम उपहारों के साथ ॠतुराज का स्वागत करती है।
आम्र वृक्षों पर बौर आने लगते हैं, तथा महुआ के वृक्षों से फूल झरने लगते हैं। ग्रामीण अंचल में यह समय महुआ बीनने का होता है। महुआ के रसीले फूल सुबह होते ही वृक्ष की नीचे बिछ जाते हैं। पीले-पीले सुनहरे फूल भारत के आदिवासी अंचल कीजीवन रेखा हैं। आदिवासियों का मुख्य पेय एवं खाद्य मानाजाता है। महुआ के फूलों की खुशबू मतवाली होती है। सोंधी-सोंधी खुशबू मदमस्त कर जाती है।
महुए की मादक गंध से भालू को नशा हो जाता है, वह इसके फूल खाकर झूमने लगता है। जंगली जानवर भी गर्मी के दिनों में महुआ के फूल खा कर क्षुधा शांत करते हैं। कई बार महुआबीनने वालों की भिडंत भालू से हो जाती है।
महुआ संग्रहण से ग्रामीणों को नगद राशि मिलती है, यहआदिवासी अंचल के निवासियों की अर्थव्यवस्था का मुख्यघटक है। मधूक वन का जिक्र बंगाल के पाल वंश एवं सेन वंशके अभिलेखों में आता है, अर्थात मधूक व्रृक्ष की महिमा प्राचीनकाल में भी रही है।
अरबों का राजस्व
वर्तमान में महुआ से सरकार को अरबों रुपए का राजस्व प्राप्त होता है। अदिवासी परम्परा में जन्म से लेकर मरण तक महुआ का उपयोग किया जाता है। जन्मोत्सव से मृत्योत्सव तक अतिथियों को महुआ रस पान कराया जाताहै। अतिथि सत्कार में महुआ की प्रधानता रहती है। महुआ किमदिरा पितरों एवं आदिवासी देवताओं को भी अर्पित करने कीपरम्परा है, इसके लिए महुआ पान से पूर्व धरती पर छींटे मारकर पितरों को अर्पित किया जाता है।
फूलों की खासियत
महुआ के फूलों का स्वाद मीठा होता है, फल कड़ुए होते हैं पर पकने पर मीठे हो जाते हैं, इसके फूल में शहद के समान गंध आती है, रसगुल्ले की तरह रस भरा होता है। अधिक मात्रा में महुआ के फूलों का सेवन स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता, इससे सरदर्द भी हो सकता है, महुआ की तासीर ठंडी समझी जाती है पर यूनानी लोग इसकी तासीर को गर्म समझते हैं।
औषधीय गुणों से भरपूर
महुआ जनित दोष धनिया के सेवन से दूर होते हैं।औषधीय गुणों से भरपूर है। महुआ, वात, पित्त और कफ कोशांत करता है, वीर्य धातु को बढ़ाता है और पुष्ट करता है।पेट के वायु जनित विकारों को दूर कर फोड़ों, घावों एवं थकावट को दूर करता है। खून की खराबी, प्यास, स्वांस के रोग, टीबी, कमजोरी, नामर्दी (नपुंसकता) खांसी, बवासीर, अनियमित मासिक धर्म, अपच एवं उदर शूल, गैस के विकार, स्तनों में दुग्धस्राव एवं निम्न रक्तचाप की बीमारियों को दूर करता है।
ये खनिज शामिल
वैज्ञानिक मतानुसार इसके फूलों में आवर्त शर्करा, सेल्युलोज, अल्व्युमिनाईड, पानी एवं राख होती है। इसमें अल्प मात्रा में कैल्शियम, लौह, पोटास, एन्जाईम्स, अम्ल भी पाए जाते हैं। इसकी गिरियों से में तेल का प्रतिशत 50-55 तक होता है। इसके तेल का उपयोग साबुन बनाने में किया जाता है। घी की तरह जम जानेवाला महुआ (या डोरी का कहलाने वाला) तेल दर्द निवारक होता है और खाद्य तेल की तरह भी इस्तेमाल होता है।
लाजवाब खुशबू
महुआ के फूलों की गमकती सुगंध बहुत भाती है। मदमस्त करने वाली सुगंध महुआ की मदिरा सेवन करने के बजाए अधिक भाती है। मौसम आने पर महुआ के फूलों की माला बनाकर उसकी सुगंध का दिन भर आनंद लिया जा सकता है। फिर अगले दिन प्रात:काल नए फूल प्राप्त हो जाते हैं।