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देशभर में भुजरिया की धूम, कई जगह शोभायात्राओं और मेलों की रौनक

 

भोपाल। परम्परा, संस्कृति और प्रकृति से जुड़ा भुजरिया पर्व सोमवार को देश के कई राज्यों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। श्रद्धालुओं ने घरों में करीब एक हफ्ते पूर्व बोई भुजरिया ताल-तलैयों आदि पर जाकर निकालकर सर्व प्रथम भगवान को भेंट की। इसके उपरांत लोग एक दूसरे से भुजरिया बदलकर गले मिले।

रूठों को मनाने और नये दोस्त बनाने के लिए भी इस त्यौहार का विशेष महत्व है। शाम के समय लोग सज-धजकर नए बस्त्र धारण कर इस त्यौहार का आनंद उठाएंगे। कई स्थानों पर विभिन्न पार्टियों और दलों द्वारा भुजरिया मिलन समारोह का आयोजन भी किया जा रहा है। जगह-जगह मेले भी भर रहे हैं।


हर वर्ष रक्षाबंधन के एक दिन बाद भुजरिया पर्व मनाया जाता है। लोधा, यादव, ग्वाला समेत कई समाज यह पर्व धूमधाम से मनाते हैं। भोपाल समेत कुछ जगह तो किन्नर भी इस दिन शोभायात्रा निकालते हैं।


भुजरिया पर्व की शुरुआत वैसे तो नाग पंचमी से ही हो जाती है जब घरों में भुजरिया बोई जाती है। एक सप्ताह तक ज्वारों को छोटी टोकरियों में लगाया जाता है जो भुजरिया कहलाती है ।

 

जिसकी पूजा करने के बाद विसर्जन के लिए तालाब पर ले जाई जाती है। इन्हें पूजन के बाद विधिवत रूप से विसर्जित किया जाता है और ज्वारों को एक-दूसरे को भेंट कर छोटों ने बड़ों के पैर छूकर व अन्य लोगों ने गले मिलकर एक-दूसरे को बधाई दी जाती है।
इस दिन महिलाएं ज्वारों को रख कर घेरा बनाकर नृत्य करती हैं एवं समाज के युवा जुलूस के रूप में डांडिया खेलते है तथा भुजरिया का पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है।

इसलिए मनाया जाता है यह पर्व

परम्परानुसार रक्षाबंधन के अलगे दिन यह पर्व मनाया जाता है। इसी के तहत सोमवार को घरों में सुख-समृद्धि की कामना के साथ भुजरिया की पूजा अर्चना की गई और परिक्रमा लगाई।
शोभायात्रा के रूप में महिलाएं सामूहिक रूप से सिर पर भुजरिया रखकर तालाबों के किनारे पहुंची। शीतलदास की बगिया, खटलापुरा, कालीघाट, शाहपुरा तालाब सहित अनेक स्थानों पर भुजरिया का विसर्जन किया गया।

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